Tuesday, December 9, 2014

जियो ज़िन्दगी यारों भाग - १

जो कहानी मैं लिखने जा रहा हूँ वो एक सच्ची घटना है। ये कहानी बताने के पीछे मेरा खास मकसद ये है कि मैं बताना चाहता हूँ कि आज को भरपूर ज़ीने की कोशिश कीजिए। कल के भरोसे जीना बंद कीजिये। 

ये कहानी है एक आदमी की या फिर यूँ कहूँ एक लड़के की। मैं उनके साथ अपने ऑफिस में काम कर चुका था।  ज़्यादा कुछ था नहीं हमारे बीच। बस दूर से हाय हेलो। मुझे ज़्यादा अच्छे नहीं लगते थे। उनका नाम पता नही क्यों, पर मैं बताना नहीं चाहता। कुछ दिनों के बाद उनकी पोस्टिंग दूसरी जगह आ गयी। किसी दूसरे से पता चला कि उन्होंने एक लड़की के साथ लव मैरेज कर लिया है और उनके इस फैसले से कोई भी खुश नहीं था,नाही लड़के के पिताजी ना  ही लड़की के परिवारवाले। हालांकि इससे उन्हें ज़्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ा। दोनों अपनी ज़िन्दगी में काफी खुश थे। उनको एक बच्चे का सुख़ भी प्राप्त हुआ।  

अब कहानी की असली शुरुआत होती है। 

उनकी तबीयत अचानक ख़राब हो गयी। उन्हें बेहतर इलाज़ के लिए दिल्ली स्थित आर & आर  हॉस्पिटल भेजा गया। जाँच में पता चला कि उन्हें ब्लड कैंसर है और वो भी आखरी स्टेज पर है। मतलब बचने की  उम्मीद नहीं थी। मैं उस समय ऑफिस के कुछ काम से दिल्ली में ही था। पता चला तो बिलकुल अच्छा नहीं  लगा। पता है हम इंसानों की एक अच्छी खासियत क्या है? हमारे किसी के साथ कितने भी बुरे सम्बन्ध क्यूँ न हों ,ऐसा कुछ पता चलने पर दिल में एक टीस तो हो ही जाती है। लगता है कि ऐसा कुछ तो नहीं होना चाहिए था। 

फिर शुरू हुई एक नयी ज़ंग की। ज़िन्दगी और मौत के बीच। हालांकि इस जंग में जीत किसकी होगी ये पहले से तय था। पर इस कहानी की असली कहानी अभी बाकी थी। संयोग से उनके एक सहकर्मी मेरे साथ ही रहते थे और मुझे साड़ी जानकारी उनके द्वारा ही मिलती थी। ये सारी बातें हमें तब पता चलीं जब उन्हें हॉस्पिटल से एक फ़ोन आया कि उनके एक दोस्त की तबियत बहुत ज़्यादा ख़राब है और उन्हें हर दिन ब्लड  ज़रुरत है। फिर हमने कुछ ऐसे लोगों को खोजा जो हर दूसरे दिन अपने प्लेटलेट्स दे सकते थे। 

उनकी पत्नी हमेशा अपने पति के साथ हॉस्पिटल में ही रहती थी। उनके पिताजी,माताजी,सास,ससुर सब उनके पास थे। पर  क्या अब कुछ  सकता था ?


बाकी अगले भाग में। इस कहानी  आखरी बात बाकी है। 

आपका 

आकाश 

Friday, December 5, 2014

कितने खुशनसीब हैं हम भाग -2

पहला भाग ब्लॉग पर डालने से पहले मैंने बहुत सारे लोगों को अपना लेख पढ़ाया।शुक्र है कि उन्हें अच्छा लगा। तो अब बात करते हैं भाग 2 की।

तीसरी कहानी है एक ऐसी लड़की की जिनकी मम्मी कैंसर से पीड़ित हैं।हर महीने उन्हें हॉस्पिटल लेके जाना पड़ता है उनके इलाज़ के लिए।अगर आपसे कहा जाए कि आपके मम्मी या पापा को कैंसर है, आपको कैसा लगेगा? वो तो पिछले दो साल से ये देख रही है।आप अपने सामने दुनिया की सबसे अनमोल व्यक्ति को मौत के गर्त में जाते देखते हैं और आप कुछ नहीं कर सकते हैं।बस एक बुत्त की तरह बैठकर सब देखते रहते हैं और भगवान से एक एक दिन की मोहलत मांगते रहते हैं।क्या चलता होता उसके जेहन में ,या फिर उसके परिवार में, हम और आप बस अंदाज़ा लगाइये।

मैं ये नहीं कहता कि हमारे और आपके पास कोई प्रॉब्लम नहीं है।पर आप इस चीज़ को लेकर परेशान हैं कि आपके मोबाइल में ३जी नही है या फिर आपका बॉयफ्रेंड किसी दूसरी लड़की के साथ लंच कर रहा था।एक लड़की का उदाहरण बताता हूँ।वो बहुत परेशान लग रही थी।मैंने पूछा तो उसका जवाब था," वो अपने मोबाइल से परेशान है क्योंकि इसमें इंटरनेट तेज़ नहीं चलता। तो मैंने कहा कि ये मोबाइल का नही नेटवर्क का प्रॉब्लम है।तो उसने कहा उससे क्या, फिर भी उसे मोबाइल बदलना है और इस चीज़ को लेकर वो परेशान है। आप अगर इसे परेशानी कहेंगे तब तो भगवान् ही मालिक है, मेरे ख्याल से। 

आप चाहे माने या ना माने, मैं यकीनन मानता हूँ और मानता रहूँगा कि

"कितने खुशनसीब हैं हम"

आपका

आकाश

Saturday, November 29, 2014

कितने खुशनसीब हैं हम भाग 1

 कहानी को लिखने से पहले मुझे बहुत  देखना था। सोचना था। समझना था।

पता नहीं क्यूँ पर अब मुझे किसी बात का गम नहीं है। ऐसा नहीं है कि मेरे पास सब कुछ है। पर हाँ एक अच्छी ज़िन्दगी जीने लिए जितनी चीज़ें चाहिए,उतनी हैं। एक अच्छी फैमिली,अच्छे दोस्त वगैरह वगैरह। सैलरी भी ५ अंकों में है। मानता हूँ कि ये ज़्यादा नहीं है पर इन सब चीज़ों की कोई लिमिट भी तो नहीं हैं। पर एक अच्छी ज़िन्दगी ज़ीने के लिए जितना कुछ चाहिए सब है।  अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग अपने ज़िन्दगी से खुश नहीं होते हैं। तो आइये  आप और हम मिलके ये देखने की कोशिश करते हैं कि "कितने खुशनसीब हैं हम"।

१. मैंने अपने ज़िन्दगी में काफ़ी लोगों को करीब से जानने की कोशिश की है। आइये उनकी ज़िन्दगी को करीब से देखने की कोशिश करते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि हम कितने खुशनसीब हैं। पहली कहानी है एक १९ साल की लड़की की। बहुत कम उम्र में शादी हो गयी थी उसकी। अपने माँ बाप की एकलौता संतान है वो। माँ और पिताजी दोनों अरब देश में नौकरी करते हैं। मतलब पैसे की कोई कमी नहीं थी उसे। एक लड़के से प्यार  गया था उसे। लड़का गरीब परिवार से था। जैसे ही उसकी परिवारवालों को भनक लगी उसकी शादी किसी इंसान से करा दी। जिसके साथ शादी हुई ,वो उसे काफी पीटता था। घर के अंदर वो हर दिन किसी न किसी के हवस का शिकार बनती थी।काफी सुन्दर है न वो। सुन्दर ऐसी कि एक बार देख लें तो नज़र हटे न हटेगी।  कभी लड़के का भाई,कभी लड़के का चाचा,बाकी की कसर उसका पति पूरा कर देता था। ऐसे माहौल में एक एक दिन काटना कैसा  सकता है आप खुद समझने की कोशिश कीजिए और सोचिये कि  "कितने खुशनसीब हैं हम"।

२. अब बात करते हैं एक ऐसे लड़के की जो  करीब १८ साल का है। एक घर में नौकर है। मैंने उसके घर बार में जानने की कोशिश की। उसके मम्मी पापा की मौत बहुत पहले हो  है। या फिर यूँ कहें कि जब वो एकदम बच्चा था तभी उसके मम्मी पापा की मौत हो गयी। फिर कुछ दिन उसके पास पड़ोस वालों ने पाला और फिर वो एक परिवार में नौकर के रूप में आ गया। पढ़ने लिखने  काफी इच्छा था। पर था तो आखिर वो नौकर ना। तो क्या फर्क पड़ता है कि वो पढ़े या नहीं पढ़े। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ। ऐसा कहना था उन परिवारवालों का। 

शेष अगले भाग में 

आपका

आकाश

Monday, October 6, 2014

सुख एवं दुःख

नमस्कार बहुत दिनोँ के बाद अपना ब्लाग लिखने जा रहा हूँ। या फ़िर यूँ कहूँ कि किसी अच्छे से विषय की तलाश में था। और आज वो मौका आ ही गया।

सुख और दुःख हमारी ज़िन्दगी के उन पहलुओं में से हैं जिन्हें कोई दरकिनार नहीं कर सकता। अगर हमारी ज़िन्दगी में सुख के क्षण आते हैं तो दुःख के भी क्षण आएंगे। हाँ ये ज़रूर हो सकता है कि समय किसी चीज़ का ज्यादा हो सकता है। सुख के समय में तो कुछ पता ही नही चलता है। और वही दुःख के समय हम तुरंत ही पागल से होने लगते हैं।

यकीन मानिए इस दुनिया में हरेक किसी के पास कुछ न कुछ दिक्कत तो है। मसलन एक बच्चे के पास उसके पढाई एवं मार्क्स को लेकर दिक्कत है जिसे लेकर वो काफी परेशान रहता है। एक 11वी या 12वी क्लास के लड़के को उसकी गर्लफ्रेंड से लेकर पढाई तक का टेंशन। हमारी युवा पीढ़ी तो गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड से सदमे से तो उबर ही नही पाती है। एक माता या पिता को अपने बच्चे के भविष्य को लेकर परेशानी।वगैरह वगैरह। तो कहने का मतलब इस दुनिया में हर कोई परेशान है। बस उसके तरीके और पैमाने अलग से है। और ऐसे समय में सारे लोगों को सिर्फ एक की ही याद आती है। और वो हैं हमारे प्यारे भगवान।

वैसे मैंने नास्तिक नही हूँ पर मुझे पूजा पाठ वगैरह में ज्यादा दिलचस्पी नही है। साल में एक या दो बार मन्दिर हो आता हूँ। हाँ इतना ज़रूर मानता हूँ कि इस दुनिया में कोई ऐसी ताकतवर अदृश्य शक्ति है जो पूरी दुनिया का संचालन कर रही है। अब आप इसे जो नाम देना चाहें ,दे सकते हैं। मेरा ऐसा मानना है कि भगवान् हमेशा हमारे साथ हैं। चाहे वो हमारी ख़ुशी के क्षण हो या गम के।

कुछ दिन पहले मैं अपने एक दोस्त से बात कर रहा था। पता चला कि उसकी शादी होते होते टूट गयी।वो इस बात को लेकर काफी परेशान था। ऐसा लग रहा था मानो उसकी ज़िन्दगी ख़त्म सी हो गयी है। मैं भी खुद को लेकर काफी परेशान था। कुछ दिनों के बाद मुझे घर जाना पड़ा। ट्रेन में बैठने के बाद भी मैं इन्हीं सब ख्यालों में खोया था। मैं अन्दर से बाहर आकर अपने डब्बे के दरवाजों पर खड़ा हो गया। शाम के करीब 4 बज रहे थे। ट्रेन द्रुत गति से जा रही थी। फिर मैंने कुछ देखा।

रेल की पटरियों के दोनों तरफ पानी का अम्बार लगा हुआ था। या फिर यूँ कहूं कि हमारी ट्रेन एक बाढ़ग्रस्त इलाके से गुज़ार रही थी। लोगों के आशियाने बाढ़ के पानी में बह गए। जहाँ तक भी नज़र जा रही थी सिर्फ पानी ही पानी नज़र आ रहा था। सहसा मेरी ट्रेन धीमी हो गयी और अंततः रुक गयी। मैं ट्रेन के दरवाज़े से निचे उतरा और एक 6 या 7 साल के बच्चे को अपने पास बुलाया जो मुझे टुकुर टुकुर देख रहा था। मैंने उससे इसके बारे में पूछा तो उसका जवाब कुछ यूँ था

" हमें तो इसकी आदत सी हो गयी है। अब तीन महीने हम रेल की पटरियों के पास में रहेंगे और पानी घटने का इंतज़ार करेंगे। हमारा घर हमारी आखों के सामने डूब जाता है और हम कुछ नहीं कर पाए। 3-4 दिनों के कुछ खाया नहीं है। घर के भी सारे लोग भूखे हैं। पता नहीं क्या होगा ।ये सारी बात कहते वक़्त उसके चेहरे की मुस्कान बनी रही और मेरे हृदय को द्रवित करती रही। एक वो था जो मुझे ज्यादा कहीं परेशान होकर भी अर्धनग्न अवस्था में भी खुश था और एक मैं था जिसके पास सब कुछ होने के बाबजूद ऐसा लगता था मानो दुनिया का सारा बॊझ मैंने उठा रखा हो। मेरे हाथ मेरे पर्स भी तरफ गए और उसमे से मैंने 200 रूपये निकाल कर उस बच्चे को दिए। वो काफी खुश हुआ और पैसे हाथ में लेकर खड़ा हो गया। तभी मेरी ट्रेन ने सीटी दी और वापस मैं ट्रेन के दरवाज़े पर खड़ा हो गया। मेरी ट्रेन धीरे धीरे अपने गंतव्य की तरफ चल पड़ी। वो बच्चा अपने हाथों को हिलाकर मुझे शुक्रिया कह रहा था और मेरी आखों से आसूँ अविरल बहते जा रहे थे। तब मुझे ज़िन्दगी की दो सच्चाई को बोध हुआ।एक तो ये की हर इंसान को उसकी परेशानी दुनिया में सबसे बड़ी लगती है पर ऐसा बिलकुल नही है। दूसरा ये कि जब आपको ऐसा लगे की कोई चीज़ आपको ज्यादा परेशान कर रही है तो दूसरों की मदद कीजिए। आप को काफी सुकून महसूस होगा।

मुझे इन्हीं सब बातों पर एक गाना याद आता है कि

" दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है"
दूजों का गम देखा तो मैं अपना गम भूल गया"।

दूसरो की मदद करें और स्वस्थ रहें सुखीं रहें।


आपका

आकाश

Monday, June 23, 2014

बाल मज़दूरी




हमारी २१वी सदी का भारत कैसा हो ये बहुत कुछ निर्भर करता है हमारी  पीढ़ी पर। पर अगर हमारी आने वाली वाली पीढ़ी ऐसी हो तो हम आने वाले समय की कल्पना  सकते हैं :-

हाल  फिलहाल  में ही मैं अपने शादी अटेंड करने घर गया हुआ था। अगर आप बिहार  के किसी ग्रामीण या कसबे में कोई शादी में शिरकत किया  नज़ारा काफी होगा कि छोटे छोटे बच्चे जिनकी  उम्र बमुश्किल १०-११ साल की होगी, अपने सर पर मुझे नहीं पता कि उसे  क्या कहते हैं पर इस तस्वीर को देखने के बाद शायद समझ जायें :-







हमारी गाड़ी करीब १० बजे अपने गंतव्य स्थान पर पहुँची थी। उस समय लेकर रात के करीब १ बजे तक इनको  अपने सर पर उठा कर रखा  और भगवान ही जाने कि इस काम  के उसे कितने पैसे मिले होंगे। अच्छा लगा ये देखकर कि उनके चेहरे पर किसी तरह की शिकन नहीं थी या फिर ऐसा रहना  आदत सी  गयी है। 

दूसरी तस्वीर कल की है जब मैं ट्रैन से सफर  रहा था।  ये सारे वाकया काफी आम हैं और लगभग हम्मे से हर किसी को इससे दो चार होना पड़ता है :-




  
जो काम हमारे रेलवे कर्मचारियों को करना चाहिए था उनको ये  कर रहे है। जिस समय में इनके हाथों में किताब और कलम होने चाहिए , हाथ में झाड़ू लिए रेलगाड़ियों के डब्बे में सफाई करते हुए ये बच्चे अक्सर पाये जाते हैं। हालांकि इसमें अच्छे लगने जैसी कोई बात नहीं है पर शुक्र है कि इन्होने ने अभी तक कोई गलत तरीके से पैसे कमाने का रास्ता अख्तियार नही किया है। 

क्या ये सारी बातें हमारे प्रशासन को नहीं पता है ? मुझे तो नहीं लगता। तो फिर दिक्कत कहा है ? क्या हमारे प्रशासन इतना लाचार हो चुका हैं कि सब कुछ जानते हुए भी अपनी आँखें मूंदे बैठा है। 

क्या ऐसा होगा हमारा २१वी सदी का भारत जिसकी कल्पना हम एक सुपरपावर के रूप में करते हैं पर किस कीमत पर ? इस कीमत पर ?? 

अपने अंदर झांकिए और सोचियेगा। 


आपका 

आकाश 

Sunday, April 20, 2014

मेरी कहानी मेरी जुबानी

करीब साढ़े चार साल हमारे रिलेशनशिप को हो चुके थे। हम दोनों ही बहुत खुश थे। अच्छी बात ये थी कि हम दोनों ने अपने रिलेशनशिप को इतने अच्छे तरीके से सजाया था कि इसमें लड़ाई, द्वेष, गाली इत्यादि जैसी चीजों के लिए कोई जगह नहीं थी। हमने इसे इतने अच्छ तरीके से संजोया था कि इसे बयां करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है।

फिर पता नही क्या हुआ ? किसी की ज़िन्दगी को बांधने गए थे और खुद की ही छोड़ आए।मुझे क्या, जितने लोगों को पता चला कि हम दोनों के रास्ते अलग हो चुके हैं,उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था। सब लोग ऐसा सोच रहे थे कि मैं उनसे मजाक कर रहा हूँ। शायद ये मेरी ज़िन्दगी का एक ऐसा पल था जिसे मैं अपनी ज़िन्दगी में दुबारा नहीं देखना चाहूँगा।

ऐसा नहीं था कि वो काफी खूबसूरत थी या फिर कोई अमीर बाप की इकलौती बेटी थी। पर उसके अन्दर कुछ ऐसा था कि उन चीज़ों ने मुझे उनकी तरफ आकर्षित किया था। मुझे सबसे अच्छी बात जो लगी थी वो थी ज़िन्दगी को जीने के तरीके। वो हमेशा हँसते रहती थी। ज़िन्दगी को जीने का एक अलग ही नज़रिया था उनका। मुझे क्या था। मैं तो आराम से सोने वाला इंसान था।पर उन्होंने मुझे सिखाया कि ज़िन्दगी एक कमरे के अन्दर ही नहीं सिमटी है। थोडा बाहर निकल कर देखो ज़िन्दगी काफी हसीन है। मुझे एक बात और जो उनकी तरफ आकर्षित करती थी वो थी उनकी "hnji" कहने के तरीके। सही बोलू तो मन करता था कि वो hnji बोलते रहे और मैं सुनता रहूँ। जब मैं अपनी ज़िन्दगी के सबसे ख़राब दौर से गुज़र रहा था तो उनके हौसले ने मेरा काफी साथ दिया। ज़िक्र करने की शुरुआत करूँ तो शायद पता नहीं कब तक लिखना पड़ेगा।
मुझे जानने वाले इस रिलेशनशिप से काफी खुश थे। उन्हें भी हम दोनों को साथ देखकर अच्छा लगता था।

हम दोनों काफी खुश थे। हमने शादी करने की सोच रखी थी। हाँ पर हमने ये तय किया था कि हम शादी अपने घरवालों की बिना मर्ज़ी से नहीं करेंगे। हमने काफी इंतज़ार भी किया। मैंने उनके पिताजी से भी बात की थी। पर वो नहीं माने। उन्हें मेरी नौकरी और मेरी कम आमदनी से परेशानी थी। अगर हम चाहते तो हम आराम से शादी कर सकते थे पर हमने ऐसा नहीं किया। हमें अपने पेरेंट्स का और उनकी इज्ज़त का भी पूरा ख्याल था। इसीलिए हमने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया।

फिर वो नवम्बर का मनहूस महीना आया जो हम दोनों को दो राहे पर खड़ा कर दिया। पता नही उनकी क्या मज़बूरी थी कि उन्होंने शादी करने से मना कर दिया। मुझे आज भी इसका सही कारण पता नहीं चल पाया है। क्या इसके उनके घर वालों का हाथ था या वो खुद थे? पता नहीं।

वो हमेशा कहती थी कि मेरे बिना अपनी ज़िन्दगी की कल्पना भी नहीं कर सकती है। पर ऐसा कुछ नहीं है। वो आज भी अपनी ज़िन्दगी में काफी खुश है। वो हमेशा कहती थी कि मुझे बात किये बगैर वो परेशान हो जाती है। हमें बात किये बगैर करीब 5 महीने हो चुके हैं। पर वो आज भी खुश है।
अगर मैं चाहता तो मैं भी बहुत तो नहीं पर थोड़ा बहुत कर सकता था। पर ऐसा नहीं किया। मैंने उनके निर्णय का सम्मान किया। मेरे लिए ये स्वीकार करना बहुत मुश्किल था कि अब हम दोनों साथ नहीं हैं।

सच तो ये है कि मरता कोई नहीं किसी के बगैर। मैं कहना चाहता हूँ उन लोगों से जो ऐसा कुछ होने के बाद अपनी ज़िन्दगी को ख़त्म करने की सोचते हैं। मैं कहना चाहता हूँ उन लोगों से जो ऐसा कुछ होने के बाद कोई गलत रास्ता अख्तियार करते हैं।

मैं "गीता" के उन शब्दों में काफी यकीन रखता हूँ कि 'जो हुआ अच्छा हुआ,जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, और जो होगा वो भी अच्छा होगा'।

आज भले हम दोनों साथ नहीं हैं पर हमारी यादें हमेशा हमारे साथ हमेशा रहेंगी। पता नहीं उनके साथ रहेंगी पर मेरे साथ हमेशा रहेंगी। और हाँ, किसी भी रिश्ते को झगडे के साथ ख़त्म नहीं करें। एक दुसरे का सम्मान करें क्यूंकि उन्हीं यादों में हम जिंदा हैं।


आपका

आकाश

Monday, April 14, 2014

ज़िन्दगी की एक सच्चाई

काफी दिन से कुछ  लिखने की काफी कोशिश कर रहा था। पर पिछले कुछ दिन या यूँ कहें कुछ महीने मेरी ज़िन्दगी के काफी ख़राब महीने रहे। मेरे साथ ऐसे कुछ घटनाएँ हुईं जो मुझे अंदर से तोड़ने के लिए काफी थे। पर पता नहीं क्यूँ अब कुछ भी बुरा नहीं लगता। शायद आदत ही हो गयी है मुझे या फिर मुझे ऐसे चीज़ों को आराम से झेलनें की शक्ति आ गयी हैं। 

हरेक सिक्के के दौड़ पहलू होते हैं। उसी तरीके से हमारी ज़िन्दगी में हरेक तरह के पल होते हैं। ख़ुशी के और गम के। शायद इस दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं है जिसके पास किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। अगर आप अपने आस पास देखें तो पायेंगे कि उनकी परेशानी हमारी परेशानी से काफी ज़्यादा है। पर उनको सुलझाने के तरीके बहुत महत्त्व रखते हैं। 

अक्सर हम देखते हैं कि हमारी परेशानी अगर २० % होती है तो हम फालतू का सोच सोच कर उसे १०० % पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। भले आप मेरा यकीन करें या नहीं करें। ख़ुशी और गम हमारी ज़िन्दगी के दो पहलु हैं और हमें उन्हें जीने में यकीन रखना चाहिए, ना कि उनसे पीछे हटने में। ऐसा क्यों हैं फिर कि हम अपने दुख के पल में डरना शुरू कर देते हैं? उसे सुलझाने की बजाय हम उन्हें पुरे तरीके से उलझा देते हैं। 

पिछले कुछ दिनों में मेरे पास तीन चार तरीके के दिक्कतों को देखने और समझने का मौका मिला। पता है इन सभी में बराबर क्या था ? कि लोगों से जान बूझकर उसे बड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। सारे लोगों ने अपनी दिक्कतों के निवारण के लिए मुझे चुना।  पता नहीं लोगों को ऐसा क्यों लगता है कि मैं उनकी दिक्कतों को आराम से सुलझा सकता हूँ या फिर इसे सुलझाने के लिए कोई सही रास्ता बता सकता हूँ। पता नहीं क्यों पर ऐसा है। मजे की बात ये है कि मेरे पिताजी के हिसाब से मैं अभी भी एक 'नाबालिक' हूँ। पर मुझे अच्छा लगता है कि लोग मेरी सलाह लेते हैं और उस पर अमल भी करते हैं। 

तो क्या में इतना बड़ा हो गया कि मैं लोगों की दिक्कतें सुन सकता हूँ और उन्हें सुलझा सकता हूँ ? तो जबाब है 

हाँ 

मैं ये कर सकता हूँ। 

मेरे  अगले ब्लॉग में मैं अपनी ज़िन्दगी के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण पहलु पर अपने विचार लिखूँगा। उम्मीद है आपको पसंद आएगी।  एक बात और। सुख और दुःख हमारी ज़िन्दगी के बहुत ही अहम पहलूँ हैं। तो इनसे न डरें। स्वस्थ रहें। अच्छे से रहें। 

आपका

 आकाश