Tuesday, December 9, 2014

जियो ज़िन्दगी यारों भाग - १

जो कहानी मैं लिखने जा रहा हूँ वो एक सच्ची घटना है। ये कहानी बताने के पीछे मेरा खास मकसद ये है कि मैं बताना चाहता हूँ कि आज को भरपूर ज़ीने की कोशिश कीजिए। कल के भरोसे जीना बंद कीजिये। 

ये कहानी है एक आदमी की या फिर यूँ कहूँ एक लड़के की। मैं उनके साथ अपने ऑफिस में काम कर चुका था।  ज़्यादा कुछ था नहीं हमारे बीच। बस दूर से हाय हेलो। मुझे ज़्यादा अच्छे नहीं लगते थे। उनका नाम पता नही क्यों, पर मैं बताना नहीं चाहता। कुछ दिनों के बाद उनकी पोस्टिंग दूसरी जगह आ गयी। किसी दूसरे से पता चला कि उन्होंने एक लड़की के साथ लव मैरेज कर लिया है और उनके इस फैसले से कोई भी खुश नहीं था,नाही लड़के के पिताजी ना  ही लड़की के परिवारवाले। हालांकि इससे उन्हें ज़्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ा। दोनों अपनी ज़िन्दगी में काफी खुश थे। उनको एक बच्चे का सुख़ भी प्राप्त हुआ।  

अब कहानी की असली शुरुआत होती है। 

उनकी तबीयत अचानक ख़राब हो गयी। उन्हें बेहतर इलाज़ के लिए दिल्ली स्थित आर & आर  हॉस्पिटल भेजा गया। जाँच में पता चला कि उन्हें ब्लड कैंसर है और वो भी आखरी स्टेज पर है। मतलब बचने की  उम्मीद नहीं थी। मैं उस समय ऑफिस के कुछ काम से दिल्ली में ही था। पता चला तो बिलकुल अच्छा नहीं  लगा। पता है हम इंसानों की एक अच्छी खासियत क्या है? हमारे किसी के साथ कितने भी बुरे सम्बन्ध क्यूँ न हों ,ऐसा कुछ पता चलने पर दिल में एक टीस तो हो ही जाती है। लगता है कि ऐसा कुछ तो नहीं होना चाहिए था। 

फिर शुरू हुई एक नयी ज़ंग की। ज़िन्दगी और मौत के बीच। हालांकि इस जंग में जीत किसकी होगी ये पहले से तय था। पर इस कहानी की असली कहानी अभी बाकी थी। संयोग से उनके एक सहकर्मी मेरे साथ ही रहते थे और मुझे साड़ी जानकारी उनके द्वारा ही मिलती थी। ये सारी बातें हमें तब पता चलीं जब उन्हें हॉस्पिटल से एक फ़ोन आया कि उनके एक दोस्त की तबियत बहुत ज़्यादा ख़राब है और उन्हें हर दिन ब्लड  ज़रुरत है। फिर हमने कुछ ऐसे लोगों को खोजा जो हर दूसरे दिन अपने प्लेटलेट्स दे सकते थे। 

उनकी पत्नी हमेशा अपने पति के साथ हॉस्पिटल में ही रहती थी। उनके पिताजी,माताजी,सास,ससुर सब उनके पास थे। पर  क्या अब कुछ  सकता था ?


बाकी अगले भाग में। इस कहानी  आखरी बात बाकी है। 

आपका 

आकाश 

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