Thursday, November 28, 2013

रिश्तों के भंवरजाल में

पिछले कुछ  दिनों से मैं रिश्तों के भँवरजाल को  जितना सुलझाने कि कोशिश कर रहा हूँ , लगता है कि उलटे उतना फँसते जा रहा हूँ। सही कहूँ तो ये एक ऐसा दलदल है कि आप जितना इससे निकलने कि कोशिश करेँगे ,उलटे उतने  ही आप धँसते जाएँगे। पिछले कुछ घटनाओं ने मुझे सोचने पे विवश कर दिया है कि मुझे शादी करनी चाहिए भी कि नहीं। अगर देखा जाए कि मुझे शादी क्यूँ करनी चाहिए तो गिन कर मेरे पास एक या दो कारण है। वो ये कि मैं लड़की से प्यार करता हूँ। बस एक ही कारण से मेरे पास। शादी नहीं करने के मैं पांच छः कारण तो बता ही सकता हूँ। जैसे कि रोज़ कि चिक चिक ज़हीक ज़हीक से आज़ादी। किसी भी चीज़ पर कोई पाबंदी नहीं। आप और आपके माता पिता के बीच में कोई रुकावट नहीं होगी। आपकी आज़ादी में खलल डालने वाला कोई नहीं होगा वगैरह वगैरह।

मैं जानता हूँ कि बहुत सारे लोगों को मेरी बात बकवास भी लगती होगी। खैर जैसी जिसकी सोच। तो मैं उनलोगों से जिन्हें मेरी बात थोड़ी सी बकवास लग रही हो,उनसे मैं ये सवाल पूछना चाहता हूँ कि  शादी के बाद पति पत्नी के बीच ऐसा क्या हो जाता है कि यह पवित्र रिश्ता थोड़े से समय में ज़िन्दगी के बीच समुन्द्र में हिचखोले खाने लगता है और किनारे तक आते आते ये पवित्र रिश्ता तार तार हो जाता है (यह सवाल में आजतक अपने आसपास हो रहे घटनाओं को देखने के बाद ही पूँछ रहा हूँ)।  फिर उन कसमों और रिवाज़ों का क्या जो शादी के वक़्त पति - पत्नी एक दूसरे से करते हैं। और नहीं निभा सकते हैं तो शादी क्यूँ करना। किसी कि ज़िन्दगी बर्बाद करने का किसी को क्या अधिकार है ?

बहुत लड़के लड़कियों को ये कहते सुना हूँ कि वो सिर्फ़ प्यार के सहारे अपनी पूरी ज़िन्दगी बीता लेंगे। पर सच तो ये है मेरे दोस्त कि जब गरीबी/दुःख घर से एक दरवाज़े से प्रवेश करती है तो पूरा प्यार एक झटके से साथ दूसरे दरवाज़े से रफूचक्कर हो जाता है।  जिन्होंने अभी तक शादी नहीं कि होंगी,अगर वो मेरा ब्लॉग पढ़ रहे होंगे,तो उन्हें ऐसा लग रहा होगा कि मैंने ये सब क्या फालतू फालतू लिखा है।  हो सकता है कि उन्हें उनके प्यार पर गर्व हो पर मेरा ऐसा मानना है कि सिर्फ़ प्यार से सहारे ज़िंदगी बिताना मुश्किल ही नहीं,नामुमकिन है(थोडा फिल्मी टच)। 

सच तो ये भी है कि सुख और दुःख ज़िन्दगी के अजीब पहलु हैं जो कभी आपका पीछा छोड़ने को तैयार नहीं होते।  प्रायः ये देखा गया है कि दुःख वाली घड़ी में नव दम्पतियों के पाँव डगमगाने लगते हैं जो ज्यादातर एक दूसरे के बीच दूरियाँ बनाने के लिए काफ़ी है। 

तो इनका इलाज़ क्या है ? क्या एक दूसरे से अलग हो जाना आपके ज़िन्दगी के सारे गम मिटा देगा ? शायद नहीं। अपने अगले लेख में मैं कुछ तरीके बताने कि कोशिश करूँगा जिससे हमलोग फिर से एक सही राह पकड़े और ज़िन्दगी पुरे जोश के साथ जियें। 

आकाश 

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