Sunday, April 20, 2014

मेरी कहानी मेरी जुबानी

करीब साढ़े चार साल हमारे रिलेशनशिप को हो चुके थे। हम दोनों ही बहुत खुश थे। अच्छी बात ये थी कि हम दोनों ने अपने रिलेशनशिप को इतने अच्छे तरीके से सजाया था कि इसमें लड़ाई, द्वेष, गाली इत्यादि जैसी चीजों के लिए कोई जगह नहीं थी। हमने इसे इतने अच्छ तरीके से संजोया था कि इसे बयां करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है।

फिर पता नही क्या हुआ ? किसी की ज़िन्दगी को बांधने गए थे और खुद की ही छोड़ आए।मुझे क्या, जितने लोगों को पता चला कि हम दोनों के रास्ते अलग हो चुके हैं,उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था। सब लोग ऐसा सोच रहे थे कि मैं उनसे मजाक कर रहा हूँ। शायद ये मेरी ज़िन्दगी का एक ऐसा पल था जिसे मैं अपनी ज़िन्दगी में दुबारा नहीं देखना चाहूँगा।

ऐसा नहीं था कि वो काफी खूबसूरत थी या फिर कोई अमीर बाप की इकलौती बेटी थी। पर उसके अन्दर कुछ ऐसा था कि उन चीज़ों ने मुझे उनकी तरफ आकर्षित किया था। मुझे सबसे अच्छी बात जो लगी थी वो थी ज़िन्दगी को जीने के तरीके। वो हमेशा हँसते रहती थी। ज़िन्दगी को जीने का एक अलग ही नज़रिया था उनका। मुझे क्या था। मैं तो आराम से सोने वाला इंसान था।पर उन्होंने मुझे सिखाया कि ज़िन्दगी एक कमरे के अन्दर ही नहीं सिमटी है। थोडा बाहर निकल कर देखो ज़िन्दगी काफी हसीन है। मुझे एक बात और जो उनकी तरफ आकर्षित करती थी वो थी उनकी "hnji" कहने के तरीके। सही बोलू तो मन करता था कि वो hnji बोलते रहे और मैं सुनता रहूँ। जब मैं अपनी ज़िन्दगी के सबसे ख़राब दौर से गुज़र रहा था तो उनके हौसले ने मेरा काफी साथ दिया। ज़िक्र करने की शुरुआत करूँ तो शायद पता नहीं कब तक लिखना पड़ेगा।
मुझे जानने वाले इस रिलेशनशिप से काफी खुश थे। उन्हें भी हम दोनों को साथ देखकर अच्छा लगता था।

हम दोनों काफी खुश थे। हमने शादी करने की सोच रखी थी। हाँ पर हमने ये तय किया था कि हम शादी अपने घरवालों की बिना मर्ज़ी से नहीं करेंगे। हमने काफी इंतज़ार भी किया। मैंने उनके पिताजी से भी बात की थी। पर वो नहीं माने। उन्हें मेरी नौकरी और मेरी कम आमदनी से परेशानी थी। अगर हम चाहते तो हम आराम से शादी कर सकते थे पर हमने ऐसा नहीं किया। हमें अपने पेरेंट्स का और उनकी इज्ज़त का भी पूरा ख्याल था। इसीलिए हमने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया।

फिर वो नवम्बर का मनहूस महीना आया जो हम दोनों को दो राहे पर खड़ा कर दिया। पता नही उनकी क्या मज़बूरी थी कि उन्होंने शादी करने से मना कर दिया। मुझे आज भी इसका सही कारण पता नहीं चल पाया है। क्या इसके उनके घर वालों का हाथ था या वो खुद थे? पता नहीं।

वो हमेशा कहती थी कि मेरे बिना अपनी ज़िन्दगी की कल्पना भी नहीं कर सकती है। पर ऐसा कुछ नहीं है। वो आज भी अपनी ज़िन्दगी में काफी खुश है। वो हमेशा कहती थी कि मुझे बात किये बगैर वो परेशान हो जाती है। हमें बात किये बगैर करीब 5 महीने हो चुके हैं। पर वो आज भी खुश है।
अगर मैं चाहता तो मैं भी बहुत तो नहीं पर थोड़ा बहुत कर सकता था। पर ऐसा नहीं किया। मैंने उनके निर्णय का सम्मान किया। मेरे लिए ये स्वीकार करना बहुत मुश्किल था कि अब हम दोनों साथ नहीं हैं।

सच तो ये है कि मरता कोई नहीं किसी के बगैर। मैं कहना चाहता हूँ उन लोगों से जो ऐसा कुछ होने के बाद अपनी ज़िन्दगी को ख़त्म करने की सोचते हैं। मैं कहना चाहता हूँ उन लोगों से जो ऐसा कुछ होने के बाद कोई गलत रास्ता अख्तियार करते हैं।

मैं "गीता" के उन शब्दों में काफी यकीन रखता हूँ कि 'जो हुआ अच्छा हुआ,जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, और जो होगा वो भी अच्छा होगा'।

आज भले हम दोनों साथ नहीं हैं पर हमारी यादें हमेशा हमारे साथ हमेशा रहेंगी। पता नहीं उनके साथ रहेंगी पर मेरे साथ हमेशा रहेंगी। और हाँ, किसी भी रिश्ते को झगडे के साथ ख़त्म नहीं करें। एक दुसरे का सम्मान करें क्यूंकि उन्हीं यादों में हम जिंदा हैं।


आपका

आकाश

Monday, April 14, 2014

ज़िन्दगी की एक सच्चाई

काफी दिन से कुछ  लिखने की काफी कोशिश कर रहा था। पर पिछले कुछ दिन या यूँ कहें कुछ महीने मेरी ज़िन्दगी के काफी ख़राब महीने रहे। मेरे साथ ऐसे कुछ घटनाएँ हुईं जो मुझे अंदर से तोड़ने के लिए काफी थे। पर पता नहीं क्यूँ अब कुछ भी बुरा नहीं लगता। शायद आदत ही हो गयी है मुझे या फिर मुझे ऐसे चीज़ों को आराम से झेलनें की शक्ति आ गयी हैं। 

हरेक सिक्के के दौड़ पहलू होते हैं। उसी तरीके से हमारी ज़िन्दगी में हरेक तरह के पल होते हैं। ख़ुशी के और गम के। शायद इस दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं है जिसके पास किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। अगर आप अपने आस पास देखें तो पायेंगे कि उनकी परेशानी हमारी परेशानी से काफी ज़्यादा है। पर उनको सुलझाने के तरीके बहुत महत्त्व रखते हैं। 

अक्सर हम देखते हैं कि हमारी परेशानी अगर २० % होती है तो हम फालतू का सोच सोच कर उसे १०० % पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। भले आप मेरा यकीन करें या नहीं करें। ख़ुशी और गम हमारी ज़िन्दगी के दो पहलु हैं और हमें उन्हें जीने में यकीन रखना चाहिए, ना कि उनसे पीछे हटने में। ऐसा क्यों हैं फिर कि हम अपने दुख के पल में डरना शुरू कर देते हैं? उसे सुलझाने की बजाय हम उन्हें पुरे तरीके से उलझा देते हैं। 

पिछले कुछ दिनों में मेरे पास तीन चार तरीके के दिक्कतों को देखने और समझने का मौका मिला। पता है इन सभी में बराबर क्या था ? कि लोगों से जान बूझकर उसे बड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। सारे लोगों ने अपनी दिक्कतों के निवारण के लिए मुझे चुना।  पता नहीं लोगों को ऐसा क्यों लगता है कि मैं उनकी दिक्कतों को आराम से सुलझा सकता हूँ या फिर इसे सुलझाने के लिए कोई सही रास्ता बता सकता हूँ। पता नहीं क्यों पर ऐसा है। मजे की बात ये है कि मेरे पिताजी के हिसाब से मैं अभी भी एक 'नाबालिक' हूँ। पर मुझे अच्छा लगता है कि लोग मेरी सलाह लेते हैं और उस पर अमल भी करते हैं। 

तो क्या में इतना बड़ा हो गया कि मैं लोगों की दिक्कतें सुन सकता हूँ और उन्हें सुलझा सकता हूँ ? तो जबाब है 

हाँ 

मैं ये कर सकता हूँ। 

मेरे  अगले ब्लॉग में मैं अपनी ज़िन्दगी के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण पहलु पर अपने विचार लिखूँगा। उम्मीद है आपको पसंद आएगी।  एक बात और। सुख और दुःख हमारी ज़िन्दगी के बहुत ही अहम पहलूँ हैं। तो इनसे न डरें। स्वस्थ रहें। अच्छे से रहें। 

आपका

 आकाश