Sunday, December 29, 2013

आप की राजनीति

कुछ भी कहिये, पिछले कुछ दिन भारत की राजनीति एक नयी हवा की बहार में रंग चुकी है। इस नयी हवा ने बहुत सारे जमे हुए राजनीति के कचडों को भी साफ़ करने का काम किया है। और इस बदलती फिजा का नाम है "आप (आम आदमी पार्टी)।

जब ८ दिसम्बर को दिल्ली,राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में हुए मतदान का रिजल्ट आया तो सभी की निगाहें सिर्फ दिल्ली में आये रुझानों पर टिक गए। भले ही बीजेपी ने चारो जगहों पर बाज़ी मारी फिर भी चारों तरफ जैसे एक ही आवाज़ सुनने को मिल रही थी और वो आवाज़ थी 'आप'। इस चुनाव में बहुत कुछ नया देखने को मिला। जैसे कि राजस्थान में बीजेपी ने दो तिहाई से ज्यादा सीटों पर दर्ज की। मध्य प्रदेश की शिवराज चौहान की सरकार तीसरी बार सत्ता में आई। एक बात गौर करने वाली ये भी थी कि पिछले चुनाव के मुकाबले बीजेपी या फिर यूँ कहें कि शिवराज सिंह की सरकार ने इस चुनाव में ज्यादा सीटों पर विजयी हुई।छत्तीसगढ़ में तीसरी बार रमन सिंह जी की सरकार बनी। पर ये सारी बातें दिल्ली में हुए चुनाव के अन्दर दब गयी। आलम तो ये था कि उसी समय शायद 9 बजे मैं ndtv पर रविश जी का कार्यक्रम देख रहा था और बीजेपी की तरफ से शाहनवाज़ हुसैन जी आये थे और उन्हें रविश जी को ये कहना पड़ गया कि कोई भी बीजेपी को बाकी बचे ३ राज्यों में मिली हुई सफलता के बारे में बात तक नहीं करना चाहता। जिसे देखो, आम आदमी पार्टी की बात कर रहा है।

क्यूँ न करें हम उसकी पार्टी की बात शाहनवाज़ जी, जिसने अपने उद्गम के मात्र एक साल के अन्दर सारी पार्टियों की चूले हिलाकर रख दी। उन दिनों मेरी राजनीति में दिलचस्पी काफी बढ़ चुकी थी।मतदान के रिजल्ट आने से पहले एक प्रोग्राम में बीजेपी की तरफ से संदीप पात्रा (नाम शायद कुछ ऐसा ही है अगर मैं गलत न हूँ तो) ने कहा था कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में सरकार बना सकती है लेकिन उसे 10 -15 साल तक इंतज़ार करना पड़ेगा। उनका कहता था कि ऐसा थोड़े ही न होता है कि आपने एक साल पहले कोई पार्टी बनाई और सीधे चुनाव जीतने के सपने देखने लगे और सरकार बनाने के सपने देखने लगे। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दिक्षित जी ने इन्हें कीड़े मकोड़े की संज्ञा दे दी थी। पर लगता है कि सत्ते की मद में चूर इन्होने राजनीति के प्रथम पाठ पर ध्यान ही नहीं दिया जहाँ ये कहा गया है कि कभी भी अपने दुश्मनों को अपने से छोटा मत समझो। काश उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया होता।

समझने वाली बात ये भी है कि आप आदमी पार्टी के अधिकतर नेताओं को इन सभी चीजों का अनुभव नामात्र के बराबर है।फिर ऐसा क्या हुआ कि इन्होने बड़े बड़े सूरमाओं के छक्के छुड़ा दिए।बात कोई भी हो, एक बात तो तय है। अब राजनीति बदल रही है। लोगों ने अपने वोट की कीमत पहचानी है। अपने अलग ब्लॉग में अरविन्द केजरीवाल जी के बारे में कुछ लिखने की कोशिश करूँगा। एक बार फिर से आम आदमी पार्टी को उनकी शानदार प्रदर्शन के लिए शानदार बधाई।

आपका 

आकाश

Saturday, December 21, 2013

रिश्तों के भंवरजाल-2

हालाकिं पिछले कुछ  दिन भारतीय राजनीति के लिए एक शुभ दिन लेकर आया फिर भी मैं उसकी चर्चा अपने अगले लेख में करूँगा। काफी दिनों से मैं कोशिश कर रहा था कि मैं अपने इस लेख को जल्द से जल्द आपके पास पहुँचाऊ।

ये लेख लिखते समय मेरे दिमाग और दिल दोनों साथ दे रहे हैं तो मैं आपको ये बता दूं की मैं अभी सिर्फ 28 साल का हूँ। तो मैं जो कुछ भी लिखूँ. हो सकता है कि उसमे कुछ कमी हो तो मैं माफी चाहता हूँ।

ये लेख मैं उन तमाम लागों,नौजवानों को समर्पित करना चाहूँगा जिनकी नैया मझधार में फँसी है।

अगर आप अपने हमसफ़र से खुश नहीं हैं ,नाराज़ हैं, तो आइये कुछ तरीके देखें (मेरे हिसाब से) जहाँ आप एक नयी ज़िन्दगी की शुरुआत कर सकते हैं।

1. किसी भी रिश्ते की मजबूती दो चीजों पर निर्भर करती है - भरोसा और सच्चाई। अगर आपको लगता है कि आपके रिश्ते में दोनों चीज़ मौजूद है तो आप बधाई के पात्र हैं। अक्सर ये देखा गया है कि हम थोड़ी देर की ख़ुशी पाने के लिए अपने हमसफ़र से झूठ बोल देते हैं पर यकीन मानिए,यही थोडा थोडा छोटा छोटा हमारी ज़िन्दगी में एक दरार पैदा करने लगती हैं। जहाँ तक बात है भरोसे कि तो अपने हमसफ़र पर इतना भरोसा ज़रूर करें कि अगर आप अपने हमसफ़र को किसी पराये के साथ देखें तो इसका अन्य अर्थ न निकालें। मैंने कई ऐसे लोगों को देखा है। इसीलिए मैंने ऐसा लिखा।

2. किसी भी अच्छे रिश्ते में अहम् या घमंड की कोई जगह नहीं है। अक्सर ये देखा गया है कि किसी बात पर अगर लड़ाई हो जाए तो दोनों लोगों के मन में एक ही बात होती है कि पहले मनाने की पहल दूसरा करें ।हर बार मैं ही क्यूँ???? मैं आपसे पूछता हूँ कि अगर आप ऐसा कर देंगे तो क्या आप छोटे हो जाएँगे?? कतई नही। तो अपने अहम् को अपने रिश्ते में से हटा दें।

3. एक अच्छे रिश्ते की बोल चाल में गलत लब्जों या फिर यूँ कहें कि गालियों की कोई जगह नहीं है। अगर आपको लड़ाई ही करनी है तो गलत लब्जों का प्रयोग न करें। अब आप कहेंगे कि लड़ाई के वक़्त कौन इन चीजों पर ध्यान देगा?? तो मैं आपसे कहना चाहूँगा कि आप समय से ही अपनी बोल चाल की शैली पर ध्यान दें। मेरा ऐसा मानना है कि अगर मैं अपने हमसफ़र से 'तुम' की जगह ' आप' करके बात करूँ तो दोनों के बीच एक अच्छे वातावरण का निर्माण होता है।

4. बात करने से बात बनती है। तो जब भी आपको लगे कि आप दोनों के रिश्ते ठीक नहीं हैं तो उन सभी चीजों पर पूरी ईमानदारी से बात करें और यकीन कीजिये आप इसमें सफ़ल भी होंगे।हाँ पर आपका प्रयास ईमानदारी से होना चाहिए।

5. जब आपको लगे कि हालात कुछ ज्यादा ही ख़राब है और पानी सर के ऊपर से बह रहा है तो आप अपने बड़ों से संपर्क कीजिये। अक्सर ये देखा गया है कि लोग अपने बड़ों के पास जाने में काफी कतराते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि अगर इन्हें कुछ पता चल गया तो मेरी इज्ज़त को तो फालूदा हो जाएगा। जनाब ऐसा कुछ नहीं होगा। चुकिं उन्होंने आपसे ज्यादा दुनिया देखी है तो वो आपका बेहतर मार्गदर्शन कर सकते हैं।तो निः शंकोच अपने बड़ो से बात करे।

मेरे ख्याल से ये कुछ ऐसी बातें हैं कि आप अपने रिश्ते को एक बेहतर दिशा दे सकते हैं। ऐसा नहीं है कि आप सिर्फ इन्हीं बातों से अपने रिश्ते को बेहतर कर सकते हैं। इनके अलावे भी बहुत सारी बातें हैं पर मुझे जो लगा मैंने लिखा।

बाकी सब कुछ आपके ऊपर छोड़ता हूँ और मैं आम आदमी पार्टी को बहुत बहुत बधाई देना चाहता हूँ उनके शानदार प्रदर्शन के लिए।

शुभ रात्रि

आकाश