Sunday, July 21, 2013

फादर डे - मेरे पिताजी भाग -४

वायु सेना में आने के बाद थोड़ा अच्छा तो लगा पर ये वो जगह नहीं थी जहाँ मेरे पापाजी मुझे देखना चाहते थे।पुरे मन से न सही पर आधे अधूरे मन से किसी तरह से उन्होंने अपने आप को मनाया। समय बीता।मैं अपनी नौकरी अच्छे तरीके से कर रहा था। इस दौरान मैंने कई परीक्षाएं दी पर अफ़सोस मैं पास नहीं कर पाया। तीन बार एस एस बी इंटरव्यू से आखरी दिन बाहर हुआ। 

ऐसा नहीं था कि मैं कोशिश नहीं की पर कुछ खास हुआ नहीं। पता है जब इंसान गलत होता है न तो वो खुद से भी दूर भागने की कोशिश करता है। मैं भी कुछ ऐसा ही कर रहा था। जरा सोचिये कि आप के पिताजी और आपके दोस्त के पिताजी एक दुसरे को अच्छे तरीके से जानते हैं। मेरा दोस्त एक अधिकारी बनता है और मैं एक आम कर्मचारी जबकि दोनों से एक साथ एक ही स्कूल से पढाई की। फिर मेरे पिताजी को कैसा लगता होगा जब वो मेरे दोस्त के पिताजी से मिलते होंगे। आखिर उन्होंने मेरी पढाई से लेकर मेरे हरेक सुख दुःख का ख्याल रखा तो क्या मैं उनके लिए इतना नहीं कर सकता था? आखिर उन्हें चाहिए ही क्या था? यही न की उनका बेटा कुछ अच्छा करे। उनका नाम रौशन करे। अफ़सोस मैं ऐसा नहीं कर पाया।

मेरी नौकरी को सात साल बीत चुके हैं। आजतक मेरे पिताजी ने ये नहीं कहा कि मैंने अपनी ज़िन्दगी में कुछ नहीं किया या फिर मैंने उनका नाम डूबा दिया और कभी कहेंगे भी नहीं। क्या करें आखिर बाप ठहरे ना। बेटा चाहे कैसा भी को, उसकी हरेक तकलीफ उनके माता पिता के लिए बहुत दर्द लाती है। अक्सर उनकी आखें कहने की कोशिश करती है कि क्या उनका ये हक नहीं था कि मैं भी कुछ अच्छा करूँ और कम से कम एक अधिकारी बनूँ।पर मेरी दिक्कत ये है की मैं उनसे आखें नहीं मिला पाता और मुझे इस बात का अफ़सोस हमेशा रहेगा। 

ऐसा नहीं है की मैंने कोशिश जारी नहीं रखी हैं पर देखिये कब सफलता मेरे कदम चूमती है। हर रात को सोते वक़्त अपने आप से एक वादा करके सोता हूँ कि एक दिन मेरे पिताजी गर्व से कहेंगे अन्नी मेरा बेटा है।उम्मीद करिए की मैं अपने पिताजी का नाम अभी से ज्यादा रौशन कर सकूँ।

आलम ये है कि कभी कभी सोते वक़्त जब ये सब सोचता हूँ तो मेरे आखें नम हो जाती हैं।आखें लोर से डब डब भर आती हैं।मैं आज भी जब क़यामत से क़यामत का 'पापा कहते हैं' गाना  सुनता हूँ तो याद आता है वो समय जब हम अपने पिताजी को कहा करते थे कि हम भी आपका नाम रौशन करेंगे। अगर मेरा हाल ये है तो मेरे पिताजी का क्या हाल होता होगा? उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में काफी संघर्ष किया है।काश उनका यह नालायक बेटा भी ऐसा कर पाता। सवाल काफी है और जवाब सिर्फ मैं।

एक चीज़ मैं ज़रूर कहना चाहूँगा। कोई भी बात हो और कैसी भी हो, अपने माता -पिता से ज़रूर शेयर करें। विश्वास करें वो हमेशा आपके साथ होंगे। आखिर बात करने से ही तो बात बनती है।

अगले ब्लॉग में एक सच्ची घटना का बताना चाहूँगा।

तब तक अपना ध्यान रखे, स्वस्थ रहे और हाँफिल्म 'लूटेरा' का 'अनकही' वाला गाना सुनते रहें।

आपका 

आकाश 

Sunday, July 14, 2013

फादर डे - मेरे पिताजी भाग - 3

एक अच्छे स्कूल से पढाई करने के बाद हरेक पिता को ये इच्छा होती है कि उसका बेटा जीवन में कुछ अच्छा करे। उच्च पदों पर जाये।खूब नाम कमाए।अफ़सोस मैं ऐसा करने में नाकाम रहा।मैं बस ५८.४ प्रतिशत से अपनी बारहवी की परीक्षा पास ही की थी।

घर में काफी टेंशन का माहौल चल रहा था।एक तो पढने में इतना सारा खर्चा और हमारे घर के हालात उतने अच्छे नहीं थे।हलाकि पापाजी ने इतना ही कहा कि उन्हें पहले से ही मुझसे ज्यादा यकीं नहीं था। इसीलिए उन्हें ज्यादा दुःख नहीं हुआ था। खैर ये तो कहने की बात है वरना दुःख किसे नहीं हुआ था। फिर मुझे बनारस भेज गया अपनी बारहवी की पढाई दुबारा करने। मैं इतना बिगड़ा हुआ था कि यहाँ भी मैं पढाई के बदले क्रिकेट खेलने में व्यस्त हो गया। यहाँ भी मेरा कुछ नही हो पाया।

हाँ, इतना ज़रूर था की इतने दिनों में मैंने कुछ फॉर्म्स भर दिए थे और कुछ का बुलावा भी आ गया था। ऐसा नहीं था कि मुझे बुरा नहीं लग रहा था। पर मैं अपनी तरफ से कोई कॊशिश नहीं की थी या फिर ये कहूँ कि ईमानदार कोशिश नहीं की थी।

इसी बीच में मुझे वायु सेना के गैर तकनीकी ब्रांच के लिए बुलावा आ गया (भगवान की दया से) और मैंने आव न ताव देखा और यहाँ आ गया।मेरे ऊपर भी काफी प्रेशर था और मैं इससे कहीं दूर जाना चाहता था।

अफ़सोस कि मैं आज इसे ख़त्म नहीं कर पाया तो अगले भाग में मैं इसे खत्म करने की कोशिश करूँगा।

तब तक अपना ध्यान रखें, स्वस्थ रहें और हाँ, भाग मिल्खा भाग का 'जिंदा' वाला गाना सुनते रहे।

शुभ रात्रि 

आपका 

आकाश  

Monday, July 8, 2013

फादर डे - मेरे पिताजी भाग - २

शायद ही ऐसा हो कि माँ - बाप अपने बच्चों को पीटें और उनका सीना छलनी न हुआ हो। हमारे पीठ के दाग भी कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे थे। पापाजी काफी परेशांन लग रहे थे।उन्हें काफी ज्यादा तकलीफ हुई थी।पर क्या करें, बच्चों को सही राह दिखाना भी उन्ही का फ़र्ज़ है और वो उसे ही निभा रहे थे।

११ साल का होते होते हमने पापाजी से करीब ३ बार अच्छी पिटाई खा चुके थे। मेरे बड़े भैया का स्कोर कुछ ज्यादा था। वैसे भी वो कुछ ज्यादा ही शरारती था।

साल १९९७, महीना जून जब मेरा दाखिला देश के सर्वोतम स्कूलों में से हुआ,"सैनिक स्कूल बIलाचडी" . इसी बीच मेरे पिताजी के ऊपर कुछ केस दर्ज हो गया जिससे उनकी नौकरी चली गयी।साल १९९८ में हमारी दादी का निधन हुआ।आप ज़रा अंदाज़ा लगाये कि जब किसी व्यक्ति को २ साल तक वेतन न मिले और उसे इतने सारे दिक्कतों का सामना करना पड़े, उस इंसान के ऊपर क्या बीत रही होगी। मेरे लिए तोह अंदाज़ा लगाना ही मुश्किल है और शायद आपके लिए भी। हालाकिं मैंने अपने बचपन के काफी कम दिन घर पर गुजरे पर कभी भी उन्होंने मुझे इस बात का आभास होने न दिया।

जून १९९९ के आसपास कोर्ट का मामला ख़त्म हुआ और पापाजी को उनकी नौकरी मिल गयी।पर अभी भी हमारे घर के हालात ठीक नहीं थे। इसी बीच में पता चला कि मेरे पिताजी को ह्रदय की बीमारी हो गयी है।२००४ में मैंने बारहवी की परीक्षा पास की।दरसल पास ही की।

आगे की बात अगले और आखरी भाग में,

तब तक अपना ख्याल रखें,स्वस्थ रहें,

आपका 

आकाश