कहानी को लिखने से पहले मुझे बहुत देखना था। सोचना था। समझना था।
पता नहीं क्यूँ पर अब मुझे किसी बात का गम नहीं है। ऐसा नहीं है कि मेरे पास सब कुछ है। पर हाँ एक अच्छी ज़िन्दगी जीने लिए जितनी चीज़ें चाहिए,उतनी हैं। एक अच्छी फैमिली,अच्छे दोस्त वगैरह वगैरह। सैलरी भी ५ अंकों में है। मानता हूँ कि ये ज़्यादा नहीं है पर इन सब चीज़ों की कोई लिमिट भी तो नहीं हैं। पर एक अच्छी ज़िन्दगी ज़ीने के लिए जितना कुछ चाहिए सब है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग अपने ज़िन्दगी से खुश नहीं होते हैं। तो आइये आप और हम मिलके ये देखने की कोशिश करते हैं कि "कितने खुशनसीब हैं हम"।
१. मैंने अपने ज़िन्दगी में काफ़ी लोगों को करीब से जानने की कोशिश की है। आइये उनकी ज़िन्दगी को करीब से देखने की कोशिश करते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि हम कितने खुशनसीब हैं। पहली कहानी है एक १९ साल की लड़की की। बहुत कम उम्र में शादी हो गयी थी उसकी। अपने माँ बाप की एकलौता संतान है वो। माँ और पिताजी दोनों अरब देश में नौकरी करते हैं। मतलब पैसे की कोई कमी नहीं थी उसे। एक लड़के से प्यार गया था उसे। लड़का गरीब परिवार से था। जैसे ही उसकी परिवारवालों को भनक लगी उसकी शादी किसी इंसान से करा दी। जिसके साथ शादी हुई ,वो उसे काफी पीटता था। घर के अंदर वो हर दिन किसी न किसी के हवस का शिकार बनती थी।काफी सुन्दर है न वो। सुन्दर ऐसी कि एक बार देख लें तो नज़र हटे न हटेगी। कभी लड़के का भाई,कभी लड़के का चाचा,बाकी की कसर उसका पति पूरा कर देता था। ऐसे माहौल में एक एक दिन काटना कैसा सकता है आप खुद समझने की कोशिश कीजिए और सोचिये कि "कितने खुशनसीब हैं हम"।
२. अब बात करते हैं एक ऐसे लड़के की जो करीब १८ साल का है। एक घर में नौकर है। मैंने उसके घर बार में जानने की कोशिश की। उसके मम्मी पापा की मौत बहुत पहले हो है। या फिर यूँ कहें कि जब वो एकदम बच्चा था तभी उसके मम्मी पापा की मौत हो गयी। फिर कुछ दिन उसके पास पड़ोस वालों ने पाला और फिर वो एक परिवार में नौकर के रूप में आ गया। पढ़ने लिखने काफी इच्छा था। पर था तो आखिर वो नौकर ना। तो क्या फर्क पड़ता है कि वो पढ़े या नहीं पढ़े। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ। ऐसा कहना था उन परिवारवालों का।
शेष अगले भाग में
आपका
आकाश