Saturday, October 19, 2013

एक सच्चाई

नमस्कार दोस्तों

मैं आकाश स्वागत करता हूँ आपका मेरे ब्लॉग पर। आप सभी को विजयादशमी की ढेर सारी शुभकामनायें। काफी दिनों से कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था। पर मेरे कंप्यूटर में कुछ खराबी आ जाने के कारण मैं कुछ लिख पाने में विवश था। ऊपर से मेरे पास कोई अच्छा सा विषय नही था।

फिर आज एक अच्छा विषय मिला तो सोचा कि मेरे विचारों को आप तक पहुचाऊ।

दरसल कुछ दिन पहले मेरे रूम में एक नया लड़का आया।बातचीत से पता चला कि पिछले साल उसके पिताजी की मृत्यु हो चुकी है और उसकी माँ की तबियत भी काफी ख़राब है और उसे तुरंत घर जाना होगा। उस समय उस लड़के की आखों में उसके दर्द को देखा जा सकता था। कुछ ऐसा ही वाक्या करीब 2-3 साल पहले मेरे साथ हुआ था। उन दिनों मैं दिल्ली में था और मेरे ही ऑफिस में एक मुझसे सीनियर का आगाज़ हुआ। बातचीत का सिलसिला चला। फिर मैंन बातचीत में उनके माँ और पिताजी के बारे में पूछा। थोड़ी ही देर में उनकी आखों से आंसू की धार निकल पड़ी। मैं सन्न हो गया। थोड़ी देर के बाद मुझे किसी और से पता चला कि उनकी माताजी का काफी साल पहले देहांत हो चुका था। एक बार बातों ही बातों में उन्होंने जिक्र किया था कि वो अपनी माताजी को काफी मिस करते हैं।

तो फिर ऐसा क्यों है कि जिनके पास उनके माता पिता जिंदा है,वो इस चीज़ को नहीं समझ पा रहे हैं। आजकल ये चीज़ तो काफी आम हो गयी है कि लोग अपने माता पिता के साथ बुरा सलूक करते हैं। उन्हें मारते है,पीटते हैं। ऐसा क्यूँ?? उन्हें अपने साथ रखने को तैयार नही हैं। क्यूँ??आखिर ऐसा क्या हो गया??

मैंने अपनी ज़िन्दगी में जितना कुछ देखा,सिखा, उससे मैं ये ज़रूर कह सकता हूँ कि हमें जो चीज़ आसानी से हासिल हो जाती है,हम उसकी कद्र करना भूल जाते हैं। यकीन मानिये, मैं सच कह रहा हूँ। और अगर यकीन न हो तो अपने गिरेबान में एक बार झाकिये। आपको खुद पता चल जाएगा। मैं कोई इनमे से अलग नहीं हूँ। मेरे साथ भी ऐसा ही है।

अपने आप को बदलने की कोशिश कीजिये और उन्हें ये एहसास दिलाये की उनकी मौजूदगी आपकी ज़िन्दगी में कितनी अहमियत रखती हैं। एहसास दिलाएं की उनके बगैर आपकी ज़िन्दगी थोड़ी रूक सी जाएगी,ठहर सी जाएगी। 

तब तक अपना ख्याल रखिये, स्वस्थ रहिये और रंग्रेज्ज़ फिल्म का 'दिल को आया सकूं' गाना सुनते रहिये।

आपका 

आकाश