Sunday, March 25, 2018

हमारा और आपका प्यार

प्यार।।।।।।।।।। देखा जाए तो इसके कितने मायने हैं. किसी के लिए ये सिर्फ चेहरे का आकर्षण है तो किसी के लिए शारीरिक संबंध बनाने का एक ज़रिया। सब के लिए अपने अपने मायने हैं। तो स्वाभाविक है कि मेरे लिए भी इसके कुछ मायने हैं। 

मेरे हिसाब से प्यार का एक ही मतलब है और वो कि खुद से पहले उनका ख़याल रखना और खुद से ज़्यादा उनका ख़याल रखना। शायद मेरे लिए प्यार के यही मायने हैं। ऐसा नहीं कि आप मेरे मायने से सहमत होंगे पर आप कुछ कर नहीं सकते क्यूँकि ये मेरा ब्लॉग है और यहाँ मैं अपने विचारों को शब्दों में ढालने के लिए स्वतंत्र हूँ। 

अक्सर मैं देखता हूँ.. पढ़ता हूँ.. सुनता हूँ..कि प्यार में इन्होने अपनी जान दे दी.. ये कर दिया वो कर दिया। मेरे ख्याल से ये प्यार नहीं हैं। क्यूंकि जब आप किसी से प्यार करते हैं तो उनकी खुशी में अपनी खुशी ढूँढते हैं। आप अगर मेरे मायने को किसी भी जगह फिट करने की कोशिश करेंगे तो पाएँगे कि मैं लगभग सही हूँ। जैसे माँ और बच्चों का प्यार. भाइयों का प्यार. यहाँ तक कि दोस्तों का प्यार (लड़की सहित)। जब हम किसी से प्यार करते हैं तो ये मत सोचिए कि वो भी हमसे प्यार करे।

और एक बात और मेरा स्वतंत्र विचार.. किसी गँवार इंसान ने कहा था कि प्यार सिर्फ एक बार होता है। घंटा मेरा। प्यार बार बार होता है अगर ऐसा नहीं होता तो आप एक बार में अपने भाई.. दोस्त.. माँ बाप बहन से प्यार नहीं कर पाते। अब यहाँ कुछ लोग कहेंगे कि ये दूसरा प्यार है वो दूसरा।तो यहाँ भी मैं वही कहूँगा..  टा मेरा।प्यार प्यार होता है और ये हमेशा हमारी जिंदगी में खुशी के लिए होता है। अगर आप किसी से प्यार करते हैं और वो आपकी ज़िंदगी में खुशी नहीं लाती है तो शायद ये सही समय है कि ऐसे लोगों से अपने आप को दूर करें। 

इसीलिए अपने प्यार के मायने को पहचाने और अच्छे से पहचान लें क्यूँकि आपकी सोच किसी भी ज़िंदगी बचा सकती है तो किसी की जिंदगी ले भी सकती है।

Saturday, October 3, 2015

क्या आप सचमुच मर्द हैं ?


मैं इस बार सिर्फ दो  कहानी लिखूँगा। मैंने  सब कुछ वही लिखा है जो मुझे उन्होंने बताया है या जो उनसे पता चला है। 

पता नहीं क्यों पर जब भी मैं महिलाओं के ऊपर कोई अत्याचार देखता हूँ तो काफी बुरा लगता है। उनके ऊपर अत्याचार करके हम अपने आप को मर्द साबित करना चाहते हैं क्या ?

पहली कहानी एक औरत के बारे में है जो अपने घर में  अपना शरीर बेचने को मज़बूर है और वो भी अपनी पति  के कारण। हर रात उनके पति अपने कुछ दोस्तों के साथ दारु पी के आते हैं और अपनी बीवी को अपने  दोस्तोँ के बीच छोड़ देता है। बस आप  ज़रा  कल्पना कीजिए क्या हालत होगी उस लड़की की जो तीन चार दरिंदों के बीच अपनी हर रात गुजारती को विवश होती  है और वो भी अपने पति के कारण । आखिर कैसे ? कोई इतना नीचे कैसे गिर सकता है ? मतलब कैसे कोई ऐसा करने का सोच सकता है ? क्या सचमुच वो एक मर्द है?

दूसरी कहानी है एक लड़की की है जो अपने दादी के साथ रहती हैं।  उनके पापा उनको देखना पसंद नहीं करते। पता है उस लड़की की गलती क्या है ? उस लड़की की गलती बस इतनी है  कि वो एक लड़की है।  और आपको जानकर ये आश्चर्य होगा कि उस लड़की के पिताजी एक डॉक्टर हैं। उस लड़की की माँ अब इस दुनिया में नहीं है और कही न कही इसके पीछे भी उनके पिताजी का ही हाथ है। क्या लड़की होना एक गुनाह है ? क्या वो 
सचमुच एक मर्द हैं ? मतलब कैसे ? क्यों? 

मेरे पास इन सारे सवालों  का कोई जवाब नहीं है।  भगवान ऐसे दिन किसी को ना दिखाए। याद रखें नारी की इज़्ज़त करें और अपने बच्चों को भी सिखायें। 


आपका 
आकाश 

Saturday, March 28, 2015

जियो ज़िन्दगी यारों भाग - २



इस कहानी के अगले भाग तक आते आते काफी समय लग गया। इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ। 

अब आते हैं असली कहानी पर। 

उनकी पत्नी हमारे कैंपस में उनके एक दोस्त के यहां रुकी हुई थी। एक दिन मैं और मेरे सहकर्मी चाय पीने जा रहे थे।  शाम के करीब ४ बज रहे थे।  थोड़ी देर पहले  ही वो अपने दोस्त को देखकर हॉस्पिटल से आये थे।  अचानक उन्हें एक फ़ोन आया और उन्होंने तुरंत अपनी बाइक चालू की और भागे। मुझे तब तक पता नही चला जब तक वो ८ बजे मुझसे मिले। जो कुछ सुना मेरे दिमाग को सुन्न करने के लिए काफी था। 

उनके दोस्त की पत्नी ने हॉस्पिटल के पांचवी मंजिल से कूद के अपनी जान दे दी। उसी शाम उनके दोस्त ने हॉस्पिटल में अपनी आखरी सांस ली।  

कुछ समय के अंदर कितना कुछ बदल गया।  किसी ने अपना बेटा खोया तो किसी ने अपनी बेटी।  सबसे बड़ी बात कि किसी ने अपने माँ  बाप को खो दिया और उसे इस बात का पता तक नही है। 

पता नही आज वो बच्चा कहाँ होगा। किसके पास होगा। क्या उसे वो प्यार मिल रहा होगा जो उसे मिलना चाहिए था। 

उस पिता के अंदर क्या चल रहा होगा जिसने अपने बच्चे खोये।  काश कुछ ऐसा  जाता की वक़्त फिर से पलट जाता। वो अपने बच्चों को गले लगाके कह पाते कि वो उनसे कितना प्यार करते हैं। कम से कम एक ज़िन्दगी तो बच जाती। 

तो ऐसा क्या हो जाता है हमें कि हम उनके जीते जी वो नही कह पाते जो उनके खोने के बाद बोलना चाहते हैं। क्यों नही हम  उन्हें बता दे कि हम उनके कितना चाहते हैं। कितना प्यार करते हैं। 

 जो कुछ कहना चाहते हैं बोलिए। उसे खोने के बाद मत बोलिए क्यूंकि फिर उसकी कोई अहमियत नही रहती। उम्मीद है वो कुछ सीखेंगे जिन्हे ऐसी आदत है। बाकी आपकी मर्ज़ी। 

आपका 

आकाश